Sad Shayari in Hindi

 Sad Shayari



हर तन्हा रात में एक नाम याद आता है,

कभी सुबह कभी शाम याद आता है,

जब सोचते हैं कर लें दोबारा मोहब्बत,

फिर पहली मोहब्बत का अंजाम याद आता है।


वो तेरे खत तेरी तस्वीर और सूखे फूल,

बहुत उदास करती हैं मुझको निशानियाँ तेरी।



अब न खोलो मेरे घर के उदास दरवाज़े,

हवा का शोर मेरी उलझनें बढ़ा देता है।


चल मेरे हमनशीं अब कहीं और चल,

इस चमन में अब अपना गुजारा नहीं,

बात होती गुलों तक तो सह लेते हम,

अब काँटों पे भी हक हमारा नहीं।


एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का,

एक ये हसरत कि कोई देखने वाला तो होता।


ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक,

न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चल के।


सिर्फ चेहरे की उदासी से

भर आये तेरी आँखों में आँसू,

मेरे दिल का क्या आलम है

ये तो तू अभी जानता नहीं।


कोई आदत, कोई बात, या सिर्फ मेरी खामोशी,

कभी तो, कुछ तो, उसे भी याद आता होगा।


इक तेरे बगैर ही न गुजरेगी ये ज़िंदगी मेरी,

बता मैं क्या करूँ सारे ज़माने की ख़ुशी लेकर।


वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है,

बहुत अजीज़ हमें है मगर पराया है,

उसे किसी की मोहब्बत का ऐतबार नहीं,

उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है।


हमने तेरे बाद न रखी किसी से मोहब्बत की आस,

एक शख्स ही बहुत था जो सब कुछ सिखा गया।


जब भी वो उदास हो उसे मेरी कहानी सुना देना,

मेरे हालात पर हँसना उसकी पुरानी आदत है।


कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी,

चैन से जीने की सूरत नहीं हुई,

जिसको चाहा उसे अपना न सके,

जो मिला उससे मोहब्बत न हुई।


जो शख्स मेरी हर कहानी हर किस्से में आया,

वो मेरा हिस्सा होकर भी मेरे हिस्से में नहीं आया।


जो तुम बोलो बिखर जाएँ जो तुम चाहो संवर जायें,

मगर यूँ टूटना जुड़ना बहुत तकलीफ देता है।


ज़ख्म क्या क्या न ज़िन्दगी से मिले,

ख्वाब पलकों से बे-रुखी से मिले,

आप को मिल गए हैं किस्मत से,

हम ज़माने में कब किसी को मिले?


कोई मिला ही नहीं जिस को सौंपते मोहसिन,

हम अपने ख्वाब की खुशबू, ख्याल का मौसम।


वो ज़हर देता तो दुनिया की नजरों में आ जाता,

सो उसने यूँ किया कि वक़्त पे दवा न दी।


माना कि किस्मत पे मेरा कोई जोर नहीं,

पर ये सच है कि मोहब्बत मेरी कमज़ोर नहीं,

उसके दिल में, यादों में कोई और है लेकिन,

मेरी हर साँस में उसके सिवा कोई और नहीं।


एक तुम ही मिल जाते बस इतना काफ़ी था,

सारी दुनिया के तलबगार नहीं थे हम।


रोज ख्वाबों में जीते हैं वो ज़िन्दगी,

जो तेरे साथ हक़ीक़त में सोची थी कभी।



ठोकर न लगा मुझे पत्थर नहीं हूँ मैं,

हैरत से न देख कोई मंज़र नहीं हूँ मैं,

उनकी नजर में मेरी कदर कुछ भी नहीं,

मगर उनसे पूछो जिन्हें हासिल नहीं हूँ मैं।


तुम्हारी तलाश में निकलूँ भी तो क्या फायदा..?

तुम बदल गए हो, खो गए होते तो और बात थी।


फलक के तारों से क्या दूर होगी जुल्मत-ए-शब,

जब अपने घर के चरागों से रोशनी न मिली।


सपनों से दिल लगाने की आदत नहीं रही,

हर वक्त मुस्कुराने की आदत नहीं रही,

ये सोच के कि कोई मनाने नहीं आएगा,

अब हमको रूठ जाने की आदत नहीं रही।


वो रोज़ देखता है डूबते सूरज को इस तरह,

काश... मैं भी किसी शाम का मंज़र होता।


ये तेरा खेल न बन जाए हक़ीकत एक दिन,

रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाया न करो।


कल क्या खूब इश्क़ से इन्तकाम लिया मैंने,

कागज़ पर लिखा इश्क़ और उसे जला दिया।


औरों के पास जा के मेरी दास्तान न पूछ,

कुछ तो मेरे चेहरे पे लिखा हुआ भी देख।


प्यास दिल की बुझाने वो कभी आया भी नहीं,

कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं,

बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी,

एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं।


था जहाँ कहना वहां कह न पाये उम्र भर,

कागज़ों पर यूँ शेर लिखना बेज़ुबानी ही तो है।


अब भी इल्जाम-ए-मोहब्बत है हमारे सिर पर,

अब तो बनती भी नहीं यार हमारी उसकी।


मुद्दत से थी किसी से मिलने की आरज़ू,

ख्वाहिश-ए-दीदार में सब कुछ गँवा दिया,

किसी ने दी खबर कि वो आयेंगे रात को,

इतना किया उजाला कि घर तक जला दिया।


किसी को इतना मत चाहो कि भुला न सको,

यहाँ मिजाज बदलते हैं मौसम की तरह।


अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम,

उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ से हम।


न जाने क्यूँ वक़्त इस तरह गुजर जाता है,

जो वक़्त था वो पलट कर सामने आता है,

और जिस वक़्त को हम दिल से पाना चाहते हैं,

वो तो बस एक लम्हा बनकर बीत जाता है।


राह-ए-वफ़ा में किसका किसने दिया है साथ,

तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले।


ऐसा नहीं कि शख्स अच्छा नहीं था वो,

जैसा मेरे ख्याल में था बस वैसा नहीं था वो।


तुमने सोच लिया मिल जायेंगे बहुत चाहने वाले,

ये भी सोच लेते कि फर्क होता है चाहतों में भी।


जरा सा झाँक कर तो देखिये वीरान आँखों में,

सभी एहसास आँखों की नमी से तय नहीं होते।


मुद्दत से कोई शख्स रुलाने नहीं आया,

जलती हुई आँखों को बुझाने नहीं आया,

जो कहता था कि रहेंगे उम्र भर साथ तेरे,

अब रूठे हैं तो कोई मनाने नहीं आया।


ये जो तुम मेरा हालचाल पूछते हो,

बड़ा ही मुश्किल सवाल पूछते हो।


मेरे लफ्जों से निकल जायें अशआर,

कोई ख्वाहिश जो तेरे बाद करूं।


बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने,

यही बस एक दरिया का नजारा याद रहता है,

मैं किस तेजी से ज़िंदा हूँ मैं ये भूल जाता हूँ,

नहीं आना इस दुनिया में दोबारा याद रहता है।


ये इश्क़ जिसके कहर से डरता है ज़माना,

कमबख्त मेरे सब्र के टुकड़ों पे पला है।


बारिश में भीगने के ज़माने गुजर गए,

वो शख्स मेरा शौक चुरा कर चला गया।


न किसी के दिल की हूँ आरजू,

न किसी नजर की हूँ जुस्तजू,

मैं वो फूल हूँ जो उदास है,

न बहार आए तो क्या करूँ।


रूठा अगर तुझसे तो इस अंदाज से रूठूंगा,

तेरे शहर की मिट्टी भी मेरे वजूद को तरसेगी।


तू रूठकर गया है तो मत आ के मुझसे मिल,

मंज़र तेरी शिकस्त का मुझसे देखा न जाएगा।


किस फिक्र किस ख्याल में खोया हुआ सा है,

दिल आज तेरी याद को भूला हुआ सा है,

गुलशन में इस तरह कब आई थी बहार

हर फूल अपनी शाख से टूटा हुआ सा है।


ज़माना खड़ा है हाथों में पत्थर लेकर,

कहाँ तक भागूं शीशे का मुक़द्दर लेकर।


मैं शिकवा करूँ भी तो किस से करूँ,

अपना ही मुक़द्दर है अपनी ही लकीरें हैं।


अजीब रंग का मौसम चला है कुछ दिन से,

नजर पे बोझ है और दिल खफा है कुछ दिन से,

वो और था जिसे तू जानता था बरसों से,

मैं और हूँ जिसे तू मिल रहा है कुछ दिन से।


तुम बहते पानी से हो हर शक्ल में ढल जाते हो,

मैं रेत सा हूँ मुझसे कच्चे घर भी नहीं बनते।


चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे,

बहार आके चली जाती है वीरानी नहीं जाती।

नसीब बनकर कोई ज़िन्दगी में आता है,

फिर ख्वाब बनकर आँखों में समा जाता है,

यकीन दिलाता है कि वो हमारा ही है,

फिर न जाने क्यूँ वक़्त के साथ बदल जाता है।


कुछ इतने दिए हसरत-ए-दीदार ने धोखे,

वो सामने बैठे हैं यकीन हम को नहीं है।


भूल पाना मुझे इतना आसान तो नहीं है,

बातों-बातों में ही बातों से निकल आऊंगा।


उतना हसीन फिर कोई लम्हा नहीं मिला,

तेरे जाने के बाद कोई भी तुझ सा नहीं मिला,

सोचा करूँ मैं एक दिन खुद से ही गुफ्तगू,

लेकिन कभी मैं खुद को तन्हा नहीं मिला।


यकीन था कि तुम भूल जाओगे मुझको,

खुशी है कि तुम उम्मीद पर खरे उतरे।


वो कतरा-कतरा मुझे तबाह करते गये,

हम रेशा-रेशा उन पर निसार होते गए।


अब क्यूँ तकलीफ होती है तुम्हें इस बेरुखी से,

तुम्हीं ने तो सिखाया है कि दिल कैसे जलाते हैं।


तुमने कहा था आँखें भर के देखा करो मुझे,

अब आँख तो भर आती है पर तुम नहीं दिखते।


तुमने तो कह दिया कि मोहब्बत नहीं मिली,

मुझको तो ये कहने की भी मोहलत नहीं मिली,

तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था,

और मुझको अपने घर से इजाज़त नहीं मिली।


रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर,

क्या खबर थी वो इतना खफा हो जाएगा।


वो आए थे मेरा दुख-दर्द बाँटने के लिए,

मुझे खुश देखा तो खफा होकर चल दिये।


हम तो मौजूद थे रात में उजालों की तरह​,

लोग निकले ही नहीं ढूढ़ने वालों की तरह​,

दिल तो क्या हम रूह में भी उतर जाते​,

तुमने चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह​।


अपनी ही मोहब्बत से मुकरना पड़ा मुझे,

जब देखा उसे रोता किसी और के लिए।


ना जाने कैसी नजर लगी है ज़माने की,

वजह ही नहीं मिल रही मुस्कुराने की।


पलकों को कभी हमने भिगोए ही नहीं,

वो सोचते हैं की हम कभी रोये ही नहीं,

वो पूछते हैं ख्वाबों में किसे देखते हो?

और हम हैं कि एक उम्र से सोए ही नहीं।


उस की हसरत को मेरे दिल में लिखने वाले,

काश उसको मेरी किस्मत में भी लिखा होता।


चेहरों में दूसरों के उसे ढूंढ़ते रहे,

कहीं सूरत नहीं मिली कहीं सीरत नहीं मिली।


क्या बताऊँ कैसे खुद को दर-ब-दर मैंने किया,

उम्र भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया,

तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ,

जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर मैंने किया।


दवा न काम आई, काम आई न दुआ कोई,

मरीजे-इश्क़ थे आखिर हकीमों से शिकायत क्या।


कुछ अजब हाल है इन दिनों तबियत का साहब,

खुशी खुशी न लगे और ग़म बुरा न लगे।


टूटे हुये सपनों और रूठे हुये

अपनों ने उदास कर दिया,

वरना लोग हमसे मुस्कराने का

राज पूछा करते थे।


अब इस से ज्यादा और क्या नरमी बरतूं,

दिल के ज़ख्मों को छुया है तेरे गालों की तरह।


मुझे मेरे कल की फ़िक्र आज भी नहीं मगर,

ख्वाहिश उसको पाने की कयामत तक रहेगी।


जरा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देती,

भंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देता,

वो ना आती मगर इतना तो कह देती कि आँऊगी,

सितारे, चाँद, सारा आसमान राहों में बिछा देता।


गुजरा हूँ हादसात से लेकिन वही हूँ मैं,

तुम ने तो एक बात पे रस्ते बदल लिए।


मेरे मुक़द्दर को भी गिला रहा है मुझसे,

कि किसी और का होता तो संवर गया होता।


उड़ता हुआ गुबार सर-ए-राह देख कर,

अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए,

बादल फिज़ा में आप की तस्वीर बन गए,

साया कोई खयाल से गुजरा तो रो दिए।


तूने फैसले ही फासले बढ़ाने वाले किये थे,

वरना कोई नहीं था तुझसे ज्यादा करीब मेरे।


एक सवाल छिपा है दिल के किसी कोने में,

कि क्या कमी रह गई थी तेरा होने में।


लिपटा है मेरे दिल से किसी राज़ की मानिंद,

वो शख्स कि जिसको मेरा होना भी नहीं है,

ये इश्क़ मोहब्बत की रिवायत भी अजब है,

पाना भी नहीं है उसे खोना भी नहीं है।


चाँदनी, जाम, कली, ख्वाब, घटा सब कुछ है,

मेरी किस्मत में मोहब्बत के सिवा सब कुछ है।


मौसम की तरह बदल देते हैं लोग हमसफर अपना,

हमसे तो अपना सितमगर भी बदला नहीं जाता।


लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं,

दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रक्खा है,

तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी,

वो दिया आज भी सीने में जला रक्खा है।


ये दुनिया तुम्हें एक पल में बरबाद कर देगी,

मोहब्बत हो भी जाए तो उसे मशहूर मत करना।


आसान नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का,

ये उनका काम है जो ज़िन्दगी बर्बाद करते हैं।


इश्क़ मोहब्बत की बातें कोई न करना,

एक शख्स ने जी भर के हमें रुलाया जो है।


क्यूँ वो रूठे इस कदर कि मनाया ना गया,

दूर इतने हो गए कि पास बुलाया ना गया,

दिल तो दिल था कोई समंदर का साहिल नहीं,

लिख दिया जो नाम वो फिर मिटाया ना गया।


ये मुकरने का अंदाज़ मुझे भी सिखा दे कोई,

वादे निभा-निभा के अब थक गया हूँ मैं।


न हाथ थाम सके और न पकड़ सके दामन,

बहुत ही क़रीब से गुजर कर बिछड़ गया कोई।


जब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फ़िक्र करूँ,

इसमें क्या इश्क़ की इज्ज़त थी कि रुसवा न हुआ,

वक्त फिर ऐसा भी आया कि उससे मिलते हुए,

कोई आँसू भी ना गिरा कोई तमाशा ना हुआ।


अब तो इस राह से वो शख़्स गुजरता भी नहीं,

अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई।


वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसान था,

मुझसे हर लम्हा मुखातिब रही ग़ैरत मेरी।


ठुकरा के उसने मुझे कहा ​कि मुस्कुराओ,

मैं हँस दिया सवाल उसकी ख़ुशी का था,

मैंने खोया वो जो मेरा था ​ही नहीं कभी,

उसने खोया वो जो सिर्फ उसी का था।


चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नहीं,

मोहब्बत अजनबी होकर बड़ी तकलीफ देती है।


एक न एक दिन मैं ढूँढ ही लूंगा तुमको,

ठोंकरें ज़हर तो नहीं कि खा भी ना सकूँ।


खोया इतना कुछ कि हमें पाना न आया,

प्यार कर तो लिया पर जताना न आया,

आ गए तुम इस दिल में पहली नज़र में,

बस हमें आपके दिल में समाना ना आया।


मत चाहो किसी को इतना टूटकर ज़िन्दगी में,

अगर बिछड़ गये तो हर एक अदा तंग करेगी।


तुम भी कर के देख लो मोहब्बत किसी से,

जान जाओगे कि हम मुस्कुराना क्यों भूल गए।


मोहब्बत से इनायत से वफ़ा से चोट लगती है,

बिखरता फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है,

मेरी आँखों में आँसू की तरह इक रात आ जाओ,

तकल्लुफ़ से, बनावट से, अदा से चोट लगती है।


आज तक है उसके लौट आने की उम्मीद,

आज तक ठहरी है ज़िन्दगी अपनी जगह,

लाख ये चाहा कि उसे भूल जायें पर,

हौंसले अपनी जगह बेबसी अपनी जगह।


आज ना पूछो मुझसे मेरी उदासी का सबब,

बस सीने से लगा कर मुझे रूला दे कोई।


न सर-ए-बाजार देखूँगा न उसको तन्हा सोचूंगा,

उसे कहना कि लौट आये मोहब्बत छोड़ दी मैंने।


मिले तो हजारों लोग थे ज़िंदगी में यारों,

वो सबसे अलग था जो किस्मत में नहीं था।


आज फिर मैंने तेरे प्यार में कमी देखी,

चाँद की चाँदनी में भी कुछ नमी देखी,

उदास होकर लौट आए उस वक़्त हम,

जब तेरी महफ़िल गैरों से सजी देखी।


कोई ख्वाब था, बिखर गया, ख्याल था मिला नहीं,

मगर इस दिल को क्या हुआ ये क्यूँ बुझा पता नहीं,

तमाम दिन उदास दिन, तमाम शब उदासियाँ,

किसी से कोई बिछड़ गया, जैसे कुछ बचा नहीं।


तुम कहाँ लगा पाओगे अंदाजा मेरी तबाही का,

तुमने देखा ही कहाँ है मुझको शाम के बाद।




Comments