Zameen Jal Chuki Hai

जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,

दरख्तों तुम्हारा इम्तहान बाकी है,

वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,

उन्ही की आखों में अब तक ईमान बाकी है,

बादलों अब तो बरस जाओ सूखी जमीनों पर,

मकान गिरवी है और लगान बाकी है.."

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